Monday, July 24, 2017

मार्क्सवाद 63

Sunil Kumar Suman बाबा साबह से जातिगत नफरत करने वाले, ये नव ब्राह्मणवादी मूर्ख हैं और अग्रगामी दलित प्रज्ञा और दावेदारी के रास्ते के स्पीडब्रेकर। हमारे यहां एक अंबेडकरवादी हैं वह बाबा साहब की ऐसी व्याख्या करता है कि अंबेडकर होते तो मार्क्स की तरह कहते, 'शुक्र है खुदा का मैं अंबेडकरवादी नहीं हूं'। ये मौजूदा संसदीय कम्युनिस्टों की तरह अपने आप अप्रासंगिक हो जायेंगे। लेकिन साथी! इतिहास का यह बहुत कठिन, अंधकाकारमय दौर है, इतिहास की गाड़ी एक अंधेरी सुरंग में फंस गयी है, निकालना है। फासीवाद के रूप में दुश्मन बहुत मजबूत है, सारी स्टेट मशीनरी के साथ इसके पास अंधभक्तों का एक बहुत बड़ा जनाधार है, उस जनाधार को तोड़ना है। मैं बार बार कह-लिख रहा हूं, खासकर जेयनयू आंदोलन के बाद से, फासीवाद के विरुद्ध एक व्यापक मोर्चे की जरूरत है, जयभीम - लाल सलाम नारे की एकता के सैद्धांतिक संश्लेषण और उसके आधार पर एक व्यापक, संयुक्त फासीवादविरोधी सशक्त मंच की सख्त जरूरत है।

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